पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥ अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण ॥ त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥ ब्रह्म – कुल – वल्लभं, सुलभ मति दुर्लभं, विकट – वेषं, विभुं, वेदपारं । दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥ गले https://shivchalisas.com